• बहुत उत्साह के साथ फिल्म देखने गया था | फिल्म के बारे में ऑनलाइन, अख़बार में, टीवी पर तारीफों के पूल बांधे जा रहे थे | और फिर अचानक ऑस्कर में भारत सरकार की अधिकारिक प्रविष्टी का समाचार पढ़ा, लगा की वाकई बहुत समय बाद देखने लायक black comedy film आई है |

    इंटरवल हुआ तो थोड़ा अटपटा लगा सोचा शायद आगे कछु हुहे | फिल्म खत्म हुई तो मैं गुस्से से उबल रहा था |

    IMBD पर फिल्म का विवरण : A government clerk on election duty in the conflict ridden jungle of Central India tries his best to conduct free and fair voting despite the apathy (गूगल से : lack of interest, enthusiasm, or concern.) of security forces and the looming fear of guerrilla attacks by communist rebels.

    फिल्म के कहानीकार और निर्देशक का मानना है की हमारे देश के सुरक्षाबल चुनाव में, नक्सली इलाकों में, कश्मीर में, नार्थ ईस्ट में lack of interest, enthusiasm, or concern के साथ ड्यूटी करते है | और केवल इनका Newton ही ईमानदार है | आखरी द्रश्य में तो उसको ईमानदारी का सर्टिफिकेट भी मिल जाता है |

    और नक्सलवादियों के प्रति सहानुभूति फिल्म में साफ झलकती है | मुझे तो शक होता है की शायद इन comunist माओवादी ताकतों ने अपनी देश द्रोही मानसिकता को सहानुभूति का नकाब पहनाने के लिए अब बॉलीवुड का रुख किया है | पूरी फिल्म में शुरू से आखिरी तक खलनायक अगर कोई है तो वो है नक्सली इलाके में तैनात सुरक्षा बल |

    ये फिल्म भारत के सुरक्षाबलों के साथ एक भद्दा और बेहूदा मजाक करती है और बुद्धिजीवियों की भाषा में इसे black comedy कहते है | दरअसल इनकी सोच ही काली है |

    मैं देख रहा था वो सारे फिल्म समीक्षक जो budhha in a traffic Jam के धुर विरोधी थे वे इसके प्रशंसक है | समझ में आता है | इसी तरह का घटिया कथानक विशाल भरद्वाज ने हैदर में पेश किया था |

    मुझे गुस्सा भारत की तरफ से ऑस्कर में इसके चयन पर आया | क्या हम दुनिया को ये कहना चाहते है की हमारे सुरक्षा बलभारत के हिंसा ग्रस्त इलाकों में अपनी जान जोखिम में डाल कर हमारी सुरक्षा नहीं कर रहे बल्कि मुफ्त का मुर्गा, ताड़ी, ताश पत्ती और चुनाव में गड़बड़ी कर रहे है | इतनी बड़ी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अपवाद स्वाभाविक है तो क्या अपवाद को ही हम सबकुछ समझ ले |

    अगर ऑस्कर के लिए चयन नहीं हुआ होता तो कोई भटे के भाव न पूछता इस फिल्म को | आज हर कोई बढ़ चढ़ कर तारीफ़ करना चाहता है इस घटिया फिल्म की क्यों की भाई ऑस्कर वाली फिल्म की समझ हमको भी है !

    अमित मसूरकर को अपनी इस फिल्म के लिए शर्म आनी चाहिए |

    September 26, 17
  • मैं हिंगलिश में review लिखना पसंद करूँगा, उम्मीद है acceptable होगा | ‘buddha in a traffic jam’ कोई बॉलीवुड मसाला फिल्म नहीं है | इसलिए इसको boxoffice collection के तराज़ू में नहीं तौला जा सकता | पहली शर्त इसे एक भारतीय नागरिक की नज़र से देखने की जरुरत है | ये फिल्म इस बात को समझने की एक छोटी सी कोशिश करती है की दरअसल नक्सली आन्दोलन, कम्युनिस्ट, माओवादी, तथाकथित बुद्धिजीवी, मीडिया, राजनेता, पुलिस, NGO और छात्र राजनीति के बीच क्या चल रहा है और उसका आदिवासियों के उत्थान से वाकई कितना सरोकार है |
    कहानी कहने के अंदाज़ को विभिन्न chapters में divide किया गया है और interval के बाद जब सारे तार जुड़ना शुरू होते है तो हमारा सामना एक छोटे से सच से होता है जो मानव जाति के लिए नया नहीं है | सदियों से ऐसा होता आया है और अनंत काल तक होता रहेगा |
    मजेदार बात ये है की शायद फिल्म की शूटिंग और कहानी रोहित वेमुला, कन्हैया, JNU etc के developments के पहले लिखी गई होगी लेकिन फिल्म देख के लगता है की देश में जो चल रहा है उसकी असली वजह क्या है वो कुछ कुछ समझ आ रहा है |
    cinematography average है | फिल्म में माँ – बहन की गलियां और F**K का काफी इस्तेमाल है इस लिए आप किस के साथ फिल्म देखने जा रहे है इस का ध्यान रखें | भारत में हम शायद इन गालियों को रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में बखूबी इस्तेमाल करते है, सुनते है, लेकिन फिर भी पारिवारिक लिहाज़ और शर्म जिंदा है और शायद हम इस तरह की भाषा परिवार के साथ बैठ कर सुनना पसंद ना करे |
    कुछ scenes भद्दे लगे, विक्रम (the hero) का वेश्या के साथ वाला scene 1980s का स्टाइल वाला लगा | लाल लाइट, wide angle closeup..|
    एक बार फिल्म ज़रूर देखें | समझे की क्या वाकई जो विवेक अग्निहोत्री कह रहे है ऐसा ही कुछ देश में चल रहा है या कन्हैया और कम्युनिस्ट वाकई दूध के धूले है | फिल्म क्रिटिक्स की एकतरफा राय पर ध्यान ना दें | अधिकतर समीक्षक जो इस फिल्म को बड़े भारी मन से बमुश्किल 3 – 4 स्टार और कुछएक तो 0 star दे रहें है वे पूर्वाग्रह से ग्रस्त है | वे समीक्षक कहलाने के लायक नहीं है | फिल्म देखने के बाद तो आप इन critics को भी नक्सली मान सकते हो | जो system में हर तरफ दीमक की तरह फैले है और देश को सफाचट कर रहे है |

    May 23, 16