• Its not just a film its a feel.

    April 18, 16
  • अगर आप मर्द हैं और किसी लड़की को अग़वा करते हैं,
    तो आपके लिए पुलिस से ज्यादा ख़तरनाक़ वही लड़की है।
    जी हाँ, हाइवे देख कर आ रहा हूँ। समझ नहीं आ रहा है कि आलिया भट्ट की एक्टिंग और ख़ूबसूरती की तरीफ़ पहले करूँ या फ़िल्म की मीनमेख पहले निकालूँ।
    बहुत बोरिंग लगी मुझे, एक लाइन की स्टोरी पर 2 घंटे की फ़िल्म बना डाली। टाइटल हाइवे का भी कोई खास सम्बन्ध नहीं लगा फ़िल्म से।
    रणदीप हूडा ने ऐसा कोई काम नहीं किया था कि आलिया को उससे प्यार हो जाता। यह शिक़ायत मुझे दर्जनों फ़िल्मों से होती है कि प्यार का विकास तर्कसंगत तरीके से नहीं दिखाते। बस, डायरेक्टर हुक़्म देता है कि अब तुम्हें इससे प्यार हो जाना चाहिए, और प्यार हो जाता है।
    शुरुआत से ही, जब लड़की अग़वा होने के बाद भागने की क़ोशिश करती है, तो पहले सीढ़ी से किसी चीज़ को खनखनाते हुए गिराती है, फिर नीचे एक और चीज़ को जोर की आवाज़ के साथ गिराती है। पढ़ी-लिखी-समझदार लड़की में इतनी अकल नहीं थी कि छुप कर भागते समय आवाज़ नहीं होने देनी चाहिए। और फिर फ़ैक्टरी में मीलों भाग कर फिर वापस आ जाना। भई, कोई भी कारखाना कितना भी बड़ा हो, ट्रेन की रेल भी हो, तो क्या बाहर जाने का रास्ता नहीं मिलेगा और कोई दूसरा नहीं मिलेगा जो मदद कर सके?
    किसी के भी बैकग्राउंड को ढंग से नहीं बताया है इसलिए उनका पर्सनेलिटी प्रोफ़ाइल नहीं बन पाया और उनके मिजाज़ों और मंशाओं को समझने की सम्भावना नहीं रही। जिससे फ़िल्म के साथ जुड़ नहीं पाए। जो हीरो शायद 3 ख़ून कर चुका हो, अग़वा करना जिसका पेशा हो, वो माँ का नाम आते ही बच्चा बन जाए, लड़की को बिना फ़िरौती के जाने दे, बाद को आँसुओं से फूट-फूट के रोए, सब फोकट की नौटंकी लगा।
    चाइल्ड एब्यूज़ का वाक़या सुनाते समय हॉल में एकदम सन्नाटा था, दर्शक डूब गए थे आलिया की अदाकारी में। बहुत ही प्रभावी सीन रहा वो। और अंत में “उन” अंकल का उल्टा आलिया पर चिल्लाना, उसको मैड कहना, बाकी लोगों का कोई प्रतिक्रिया न होना, बाप का भी दोस्त के द्वारा अपनी बेटी के बचपन से होते रहे बलात्कार पर कोई प्रतिक्रिया न होना, आलिया के फ़ियांसी का होने वाली बीवी के सालहा बलात्कार के बारे में सुनकर भी बलात्कारी को आराम से वॉकआउट करने देगा, इन सबने रहीसों के स्टीरियोटाइप को मज़बूत ही किया है कि उनमें नैतिकता, भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं होती है, बस पैसा उनका ख़ुदा होता है।
    आलिया को कैसे मालूम कि बचपन में रणदीप कैसा दिखता था, तो बाद को उसकी कल्पना में एकदम वही रणदीप कैसे आ पाया जैसा वो बचपन में था।
    जब एक गोली पीठ में और एक सीधे सीने पर, दिल पर लगी हो, तो इंसान उतने सेकंड भी ज़िन्दा नहीं रह पाएगा जितनी देर रणदीप ज़िन्दा रहा, ऐसा मुझे लगता है।
    रहमान साब के गाने फ़िलर जैसे थे। फ़िल्म में फ़िट किए थे, लेकिन कोई गाना फ़िल्म के सन्दर्भ में अपनी छाप नहीं छोड़ता है।
    इम्तियाज़ अली की पिछली फ़िल्म रॉकस्टार को मैंने 4 बार देखा था हॉल में।
    ये फ़िल्म एक बार देखने लायक़ भी नहीं है, सिवाय आलिया के, जो इस फ़िल्म की ज़बरदस्त खोज रही। एक डॉक्यूमेंटरी जैसी है, लेकिन डॉक्यूमेंटरी में कोई थीम एलीमेंट होता है जो इसमें नदारद है।

    February 25, 14
  • Sometimes even the wrong train can take you to the right destination.
    I’m going with five out of five for ‘The Lunchbox’ which leaves you with open ending, but one that also nicely sums up its unique premise with hell lots of nerves running with mixed thoughts in mind.

    November 04, 13