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Highway. It is most personal work of Imtiaz Ali. He deliberately cuts down the frills from the execution and focus only on the characters and their feeling about themselves.
Highway's strength lies in the authentic characterization and right casting of its lead characters. Randeep Hooda as goon from Haryana and Alia Bhatt as daughter from a super-rich family from Delhi look, feel, talk and act like that they are wearing their characters on their souls. Their acting in each and every frame is up to the mark. Being a road movie, Highway succeeds in taking you to a beautiful journey that does not want to end.
But unfortunately, screenplay is predictable and does not have too many surprises to keep you engaged. I am going with good 7 out of 10 for Highway. Watch it for Alia and Randeep's performance, watch it for Imtiaz Ali's understanding of his characters. Watch it for a beautiful journey but do not care about the destination.0November 09, 14 -
The film brings alive the spirit of freedom which lies unexplored among all of us. You may not be able to completely relate with the extremely adventurous passion of the protagonist but it would definitely bring you to a dilemma of it being unrealistic or rational.
Alia, born and brought up in a rich household gets kidnapped by Randeep (a truck driver) and thereafter a new life begins for Alia.The cinematography is splendid and it proves that there are indeed so many beautiful places in our country lying unexplored. Randeep Hooda really deserves accolades for playing his character as real as one can imagine. His fluency with the colloquial Rajasthani posed with his strong expressions have contributed a lot in building the storyline.
Alia gives her best shot.She has actually grown leaps and bounds in her performance level in her second film itself which is quite commendable especially at such a young age.
The film has its' share of "hard to believe" sequences, however Imtiaz Ali has tried his level best to club it with the harsh realities that prevail all around us. It is quite interesting and emotional to see how Alia and Randeep from extremely different sections of the society understand and empathize with each other's sorrows.
I would describe "Highway" as a journey which takes off as an adventure and ends with a life's goal.Each one of us has that "pataka guddi" within us to introspect and realize that life is very short and we cannot wait for any miracle to happen all by itself. So, follow your heart and enjoy every small happiness that life has given us........and who knows you may find the ultimate solace at the end of your "Highway".4March 24, 14 -
अगर आप मर्द हैं और किसी लड़की को अग़वा करते हैं,
तो आपके लिए पुलिस से ज्यादा ख़तरनाक़ वही लड़की है।
जी हाँ, हाइवे देख कर आ रहा हूँ। समझ नहीं आ रहा है कि आलिया भट्ट की एक्टिंग और ख़ूबसूरती की तरीफ़ पहले करूँ या फ़िल्म की मीनमेख पहले निकालूँ।
बहुत बोरिंग लगी मुझे, एक लाइन की स्टोरी पर 2 घंटे की फ़िल्म बना डाली। टाइटल हाइवे का भी कोई खास सम्बन्ध नहीं लगा फ़िल्म से।
रणदीप हूडा ने ऐसा कोई काम नहीं किया था कि आलिया को उससे प्यार हो जाता। यह शिक़ायत मुझे दर्जनों फ़िल्मों से होती है कि प्यार का विकास तर्कसंगत तरीके से नहीं दिखाते। बस, डायरेक्टर हुक़्म देता है कि अब तुम्हें इससे प्यार हो जाना चाहिए, और प्यार हो जाता है।
शुरुआत से ही, जब लड़की अग़वा होने के बाद भागने की क़ोशिश करती है, तो पहले सीढ़ी से किसी चीज़ को खनखनाते हुए गिराती है, फिर नीचे एक और चीज़ को जोर की आवाज़ के साथ गिराती है। पढ़ी-लिखी-समझदार लड़की में इतनी अकल नहीं थी कि छुप कर भागते समय आवाज़ नहीं होने देनी चाहिए। और फिर फ़ैक्टरी में मीलों भाग कर फिर वापस आ जाना। भई, कोई भी कारखाना कितना भी बड़ा हो, ट्रेन की रेल भी हो, तो क्या बाहर जाने का रास्ता नहीं मिलेगा और कोई दूसरा नहीं मिलेगा जो मदद कर सके?
किसी के भी बैकग्राउंड को ढंग से नहीं बताया है इसलिए उनका पर्सनेलिटी प्रोफ़ाइल नहीं बन पाया और उनके मिजाज़ों और मंशाओं को समझने की सम्भावना नहीं रही। जिससे फ़िल्म के साथ जुड़ नहीं पाए। जो हीरो शायद 3 ख़ून कर चुका हो, अग़वा करना जिसका पेशा हो, वो माँ का नाम आते ही बच्चा बन जाए, लड़की को बिना फ़िरौती के जाने दे, बाद को आँसुओं से फूट-फूट के रोए, सब फोकट की नौटंकी लगा।
चाइल्ड एब्यूज़ का वाक़या सुनाते समय हॉल में एकदम सन्नाटा था, दर्शक डूब गए थे आलिया की अदाकारी में। बहुत ही प्रभावी सीन रहा वो। और अंत में "उन" अंकल का उल्टा आलिया पर चिल्लाना, उसको मैड कहना, बाकी लोगों का कोई प्रतिक्रिया न होना, बाप का भी दोस्त के द्वारा अपनी बेटी के बचपन से होते रहे बलात्कार पर कोई प्रतिक्रिया न होना, आलिया के फ़ियांसी का होने वाली बीवी के सालहा बलात्कार के बारे में सुनकर भी बलात्कारी को आराम से वॉकआउट करने देगा, इन सबने रहीसों के स्टीरियोटाइप को मज़बूत ही किया है कि उनमें नैतिकता, भावनाओं के लिए कोई जगह नहीं होती है, बस पैसा उनका ख़ुदा होता है।
आलिया को कैसे मालूम कि बचपन में रणदीप कैसा दिखता था, तो बाद को उसकी कल्पना में एकदम वही रणदीप कैसे आ पाया जैसा वो बचपन में था।
जब एक गोली पीठ में और एक सीधे सीने पर, दिल पर लगी हो, तो इंसान उतने सेकंड भी ज़िन्दा नहीं रह पाएगा जितनी देर रणदीप ज़िन्दा रहा, ऐसा मुझे लगता है।
रहमान साब के गाने फ़िलर जैसे थे। फ़िल्म में फ़िट किए थे, लेकिन कोई गाना फ़िल्म के सन्दर्भ में अपनी छाप नहीं छोड़ता है।
इम्तियाज़ अली की पिछली फ़िल्म रॉकस्टार को मैंने 4 बार देखा था हॉल में।
ये फ़िल्म एक बार देखने लायक़ भी नहीं है, सिवाय आलिया के, जो इस फ़िल्म की ज़बरदस्त खोज रही। एक डॉक्यूमेंटरी जैसी है, लेकिन डॉक्यूमेंटरी में कोई थीम एलीमेंट होता है जो इसमें नदारद है।4February 25, 14 -
No words to explain for this movie......
0March 19, 18